Tuesday, November 23, 2010

कई बार युही देखा है..........


आज एक गाना सुना...
कई बार युही देखा है , ये जो मन की सीमा रेखा है
मन तोड़ने लगता है
अनजानी प्यास के पीछे , अनजानी आस के पीछे
मन दौड़ने लगता है....
एक बार सुना .. फिर दूसरी बार ... और फिर न जाने कितनी बार बस सुनती ही चली गयी .. जिंदगी की सारी उलझनों को कितनी आसानी से शब्दों में पिरो दिया है योगेश जी ने.. काफी दिनों से अपनी जिंदगी को लेकर हैरान परेशान सी थी मैं .. बोहोत डर लग रहा था की क्या होगा कॉलेज ख़त्म होने के बाद .. और थोडा डर तो शायद अब भी कही न कही अन्दर है ही जिसे मैंने बड़ी मुश्किल से बहला फुसला कर सुला दिया है पर वो कब फिर जाग जायेगा मुझे नही पता .. क्या सच में स्कूल और कॉलेज के जिन जिंदगी के सबसे अच्छे दिन होते है ??
क्या इससे ज्यादा ख़ुशी और आराम की जिंदगी अब सच में नही मिलेगी ??? ऐसे ही न जाने कितने सवाल हमेशा मुझे घेरे रहते है .... सच में ऐसा लग रहा है की किसी अनजानी प्यास के पीछे , अनजानी आस के पीछे मन दौड़ रहा है... पर उस अनजानी प्यास को मैं समझ ही नही पा रही ... क्या है आखिर इस जीवन का लक्ष्य ?? plzzz सहायता कीजिये .....

Monday, November 8, 2010

एक लड़की का बचपन ......


कहते है बचपन से अच्छा समय कोई नही होता... भले ही बचपन में ये बात बकवास लगती हो पर बड़े होकर ये सोला आने सच लगती है . बचपन हम सभी के लिए बहोत मायने लखता है , पर एक लड़की के लिए बहुत बहुत ज्यादा ... एक लड़की के लिए बचपन वो है जब उसकी दादी उसे ये नही डाटती की " छोरी घर का काम किया कर जरा " ... ना पिताजी गली में कंचे खेलने से मना करते है . और ना माँ कहती है की जरा रोटी सिकवा दे .. बचपन तब था जब स्कूल में लड़के लडकियों की अलग अलग टीम नही बनती थी , न किसी लड़के से गुत्तम गुत्ता होने से पहले सोचना पड़ता था .. तब ताउजी घुर कर नही देखते थे जब कोई लड़का घर होमवर्क कॉपी मांगने आता था और न कोई अकेले हाट जाने पर कोई टोकता था ... फिर धीरे धीरे मेरे कद के साथ सब बदल गए ... टोका टोकी , रोका रोकी जीवन का अभिन्न अंग बन गया .. आज मुड कर देखती हु तो लगता है लोग क्यों क्यों कहते है लडकिय लडको से जल्दी समझदार हो जाती है ?? कहना तो ये चाहिए लडकियों को जबरजस्ती बड़ा कर दिया जाता है .. वो चाहे या न चाहे .. आखिर क्यों परिवार की इज्जत की साडी जिम्मेदारी लडकियों के कंधो पर थोप दी जाती है.. बस बचपन के कुछ साल ही तो होता है उसके पास जीने के लिए खुल के सांस लेने के लिए , फिर धीरे धीरे slow poison की तरह उसकी जिम्मेदारियों का बोझ बड़ा दिया जाता है .. तब तक जब तक बस कोई छोटा सा कोना नही बच जाता उसके सांस लेने के लिए ... और इस तरह एक लड़की का बचपन ख़त्म कर दिया जाता वो लड़की नज़र आती है यही कही आपके मेरे आसपास.... या शायद छत पर अकेले खड़े हुए अपने खो चुके बचपन के बारे में सोचते हुए ...है ...

Tuesday, November 2, 2010

डायरी के कुछ पन्ने ......

क्यु जिंदगी से अपेक्षाए बदती ही जा रही है... क्यु कुछ बड़ा कुछ अलग करने की चाह है इस दिल में .. आम इन्सान होना कोई बुरी बात तो है नही तो फिर क्यु इस जिंदगी से मन उचाटता जा रहा है ... कही न कही मन ये भी जानता है की पैसे से खुसिया नही खरीदी जा सकती फिर भी क्यु सब आँखे मूंदे उसी के पीछे भाग रहे है ... हमें लगता है की पैसा आ जायेगा तो ख़ुशी मिलेगी पर अगर अभी ही हम खुश है तो क्या ?? ओर पैसे की क्या जरुरत है ?? अगर कोई इन्सान धुप में ठेला खींचकर रात को पेट भर रोटी खा कर खुश है तो हमे उस पर दया दिखने का क्या हक़ है ?? हम क्यु आज कल हर चीज़ को पैसे से तोलने लगे है ... हर इन्सान टाटा , बिडला बनने पैदा नही हुआ ... हमें बस ये समझना है की आम होना भी खास है... क्युकि हर खास इन्सान अपने आप में आम इन्सान ही होता है और हर आम इन्सान कही न कही खास ही होता है...