Wednesday, June 8, 2011

ख़ुशी.........


ख़ुशी....... ख़ुशी सबको चाहिए होती है पर किसके लिए ख़ुशी के क्या मायने है ये कौन बता सकता है .. कोई खाने में ख़ुशी ढूँढता है कोई संगीत में .. कोई प्यार में तो कोई पूजा में .. हो सकता है जो दो सूखी रोटी देख किसी का चेहरा उतर जाता है उसी रोटी को देख किसी की ख़ुशी की सीमा न रहे ...खैर ... इन अलग अलग मायनो में ही सही , जरूरी है तो बस खुश रहना ... असली दिक्कत तब आती है जब हम दुसरो को ख़ुशी देना चाहते है लेकिन उनके नही अपने मायनो में... हम तो हमारी तरफ से अच्छा ही सोचते है पर कौन जानता है की सामने वाले को वो ख़ुशी देगा या सिर्फ दर्द .. उदाहरण के तौर पर एक पिता ये चाहता है की बेटी की जल्द से जल्द अच्छे घर में शादी हो जाये ..... उसे नौकरी न करना पड़े .. आदि ... पर हो सकता है बेटी को ये चीज़े रत्ती भर भी ख़ुशी न दे .... उसकी ख़ुशी नौकरी में ही हो... पर सोच के इन फासलों को मिटाना आसान भी तो नही है .. हमें बस इतना ध्यान रखना है की हम अपनी सोच किसी पर न थोपे .. अगर हम सच में किसी को ख़ुशी देना चाहते है पहने उस इन्सान को समझे और तब ही कोई फैसला ले .....

Monday, May 2, 2011

हम... या शायद मैं ......


शुतुरमुर्ग के बारे में कहा जाता है की जब तूफान आता है तो वो अपना मुह रेत में खुसा लेता है और उसे लगता है की तूफान चला गया क्युकि वो उसे देख नही पाता.. और इस तरह वो अपनी जान गवा बैठता है .. पढकर पहले उसकी मुर्खता पर हसी आती थी पर आज लग रहा है की कही न कही हम भी उस शुतुमुर्ग की तरह ही है जो चाहते है या सोचते है की अगर हम दुनिया के बारे में नही सोचेंगे तो वो हमारे बारे में नही सोचेगी , और इसी खुशफहमी में जीते रहने है.. पर होता कुछ अलग ही है.. दुनिया हमारे बारे में सोचती रहती है बोलती रहती है और हम उन सब सही गलत बातो से अनजान जीते रहते है... पर ये भी एक सच है की इस दुनिया से कट के ज़ी पाना तो नामुमकिन है और जब हम होश संभाल के दुनिया की तरफ देखते है तो हमें हम तो दिखते ही नही है ... हमें कोई और ही दिखता है .. जिसे दुनिया ने अपने हिसाब से बनाया है ..वो इन्सान हमें अनजाना सा लगता है ... हमें यकीन नही होता की वो हम ही है .. और हम फिर दुनिया से दूर होते चले जाते है .. पर इस बार वो दुरी ख़ुशी नही देती .. और हम बस खुद से यही कह पाते है ... काश... काश..

Sunday, April 10, 2011

जिंदगी . . . . . . .


जिंदगी में खुश रहना उतना ही जरूरी है जितना की सांस लेना.. जब घर में कोई छोटा बच्चा पैदा होता है तो हम क्यों खुश होते है .. क्युकि हम एक नयी जिन्दगी का जश्न मनाना चाहते है... पर उस जिंदगी का क्या जो हमारे अन्दर है हम उसे क्यों भूल जाते है ..?? हमें क्यों हमेशा शिकायत होती है अपने आप से ... आखिर हम जैसे है वैसे है .. क्या हम खुद से भी खुश नही रह सकते .. आखिर खुद को बदलना तो हमारे हाथ में ही है न तो हम क्यों चाहते है हमारी हर मंजिल का रास्ता कोई ऊँगली पकड़ कर तय करवा दे... क्यों हम सिर्फ दुसरो के लिए जीने लगते है और उनके बिना जीवन को बेस्वाद पाते है जबकि मसालों का डिब्बा तो हमारे पास ही है ... हम इन्सान है इसलिए किसी के जाने पर दुःख होना स्वाभाविक है पर बस ध्यान इतना रखना है की वो दुःख हमारी उन खुशियों पर हावी न हो जो हमारे अन्दर है :) :) :)

Monday, February 7, 2011

राष्ट्रवाद और हम


आज़ादी के पूर्व से ही राष्ट्रवाद को एक पक्ष विशेष के द्वारा धर्म से जोड़ दिया गया . भारत माता , वन्दे मातरम , नैतिक शिक्षा आदि बातो को हिंदुत्व से जोड़ने के कारन सरकारी तंत्र को इनसे परहेज करना पड़ा . धीरे धीरे हमारी शिक्षा पद्धति और हमारा सामाजिक चिंतन हर उस बात को नकारने लगा जो की एक राष्ट्र में राष्ट्रीयता की भावना को बड़ाने के लिए जरूरी होती है . इन्ही सब कारणों से पिछले ६० वर्षो में जो समाज निर्मित हुआ वो हमारी गौरवमयी प्राचीन परंपरा से दूर होता चला गया ... आज स्थिति यह है की हमारे देश को दिशा देने वाला नेतृत्व भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा हुआ है .. २G SPECTRUM घोटाला , CWG घोटाला , आदर्श सोसाइटी घोटाला आदि इतने बड़े बड़े घोटाले हो रहे है की कितने शून्यो का उपयोग करना है दस बार सोचना पड़ता है . उपरोक्त घोटाले इसलिए हुए की खजाने की चाबी चोर के पास ही थी .. कानून बनाने वाले भी वही थे और तोड़ने वाले एक ही लोग थे . इस स्तिथि से उभरने का एक मात्र हल यही है की राष्ट्रप्रेम की भावना को बढावा दिया जाय .. व्यक्ति व्यक्तिगत हित से राष्ट्रहित को आगे रखे . राष्ट्र प्रेम की भावना को बड़ाने के लिए स्कूल कॉलेज में नैतिक शिक्षा का पाठ्यक्रम साम्प्रदायिकता को नजरअंदाज करते हुए शीघ्र शुरू करना चाहिए . हर देश का एक नैतिक द्रष्टिकोण होता है जो की उसके प्राचीन धर्म और संस्कृति पर आधारित होता है लेकिन भारत की मूल धर्म और संस्कृति क्या है इसी को लेकर पिछले ६० साल से विवाद की स्तिथि है देशहित में यह अत्यंत जरूरी है की हम इस दुविधा की स्थिति से बाहर आये वरना इस देश के भविष्य को बर्बाद होने से कोई नही बचा सकता .

सनद जिंदल my papa :)