Monday, November 8, 2010

एक लड़की का बचपन ......


कहते है बचपन से अच्छा समय कोई नही होता... भले ही बचपन में ये बात बकवास लगती हो पर बड़े होकर ये सोला आने सच लगती है . बचपन हम सभी के लिए बहोत मायने लखता है , पर एक लड़की के लिए बहुत बहुत ज्यादा ... एक लड़की के लिए बचपन वो है जब उसकी दादी उसे ये नही डाटती की " छोरी घर का काम किया कर जरा " ... ना पिताजी गली में कंचे खेलने से मना करते है . और ना माँ कहती है की जरा रोटी सिकवा दे .. बचपन तब था जब स्कूल में लड़के लडकियों की अलग अलग टीम नही बनती थी , न किसी लड़के से गुत्तम गुत्ता होने से पहले सोचना पड़ता था .. तब ताउजी घुर कर नही देखते थे जब कोई लड़का घर होमवर्क कॉपी मांगने आता था और न कोई अकेले हाट जाने पर कोई टोकता था ... फिर धीरे धीरे मेरे कद के साथ सब बदल गए ... टोका टोकी , रोका रोकी जीवन का अभिन्न अंग बन गया .. आज मुड कर देखती हु तो लगता है लोग क्यों क्यों कहते है लडकिय लडको से जल्दी समझदार हो जाती है ?? कहना तो ये चाहिए लडकियों को जबरजस्ती बड़ा कर दिया जाता है .. वो चाहे या न चाहे .. आखिर क्यों परिवार की इज्जत की साडी जिम्मेदारी लडकियों के कंधो पर थोप दी जाती है.. बस बचपन के कुछ साल ही तो होता है उसके पास जीने के लिए खुल के सांस लेने के लिए , फिर धीरे धीरे slow poison की तरह उसकी जिम्मेदारियों का बोझ बड़ा दिया जाता है .. तब तक जब तक बस कोई छोटा सा कोना नही बच जाता उसके सांस लेने के लिए ... और इस तरह एक लड़की का बचपन ख़त्म कर दिया जाता वो लड़की नज़र आती है यही कही आपके मेरे आसपास.... या शायद छत पर अकेले खड़े हुए अपने खो चुके बचपन के बारे में सोचते हुए ...है ...

5 comments:

  1. सही बात लिखी है आपने..पर अब कुछ-कुछ सुधार होता जा रहा है..

    ReplyDelete
  2. बिलकुल सही कहा। वैसे साकेत ने सही कहा अब हालात बदल रहे हैं। फिर भी समाज सृ्जन के लिये नारी का ये त्याग वन्दनीय और जरूर्वी भी है। शुभकामनाये।

    ReplyDelete
  3. श्वेता जी,

    पंख के बाद उड़ान...... बहुत खूब ये ब्लॉग आज ही देखा है मैंने सिर्फ दो पोस्ट पर दोनों ही दमदार.....पहले दूसरी रचना.......सच तो ये है की अब भी लोगो का सिर्फ पहनावा और खाना ही मॉडर्न हुआ है ...सोच अब भी वही की वही है....ऑनर किलिंग इस बात का जीता जगता सबूत है......बहुत खूबसूरती से आपने एक नारी के भावों को दर्शाया है.....तो इसे बदलने के लिए भी नारी को ही प्रयास करना होगा.....

    अब पहली रचना .....बहुत अच्छी सोच है आपकी.... आपकी बातों से ही आपकी आत्मिक शुद्धता का परिचय मिलता है | सुख और दुःख तो हमसे हैं हम उनसे नहीं.......ये संसार तो भीड़ है और भीड़ में चलने वाले कहीं नहीं पहुँचते....जो पहुँचे हैं वो अकेले ही चले थे और पहुंचे थे....आपका द्वंद मैं समझ सकता हूँ .....इस उम्र में ये भाव बहुत कम लोगों में मिलते हैं.......

    आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा....आपके शब्दों से अधिक मैं आपके मौन को समझ सकता हूँ., क्योंकि शब्द सब कुछ नहीं कह सकते.....इंशाल्लाह साथ बना रहेगा|

    खुदा आपका मुहाफ़िज़ रहे.....आमीन|

    ReplyDelete
  4. bahan sweta,
    again achchhi post...mai is liye bhi achchha likh raha hun ki aapne badi imandari se likha hay..kuchh aisa jo sabhi sonchte hayn...bilkul sach bayan karte hue..soft shabdon me ek gudh baat...magar mai ek baat kahna chahunga..waqt kabhi rukta nahi..bahadur wo hay jo jate waqt me aane wale kal ka niw rakh le..mere pure pariwar ke taraf se dheron badhai..achchhe lekhan..sundar jivan..aadi ityaadi ke liye..

    ReplyDelete