
आज एक गाना सुना...
कई बार युही देखा है , ये जो मन की सीमा रेखा है
मन तोड़ने लगता है
अनजानी प्यास के पीछे , अनजानी आस के पीछे
मन दौड़ने लगता है....
एक बार सुना .. फिर दूसरी बार ... और फिर न जाने कितनी बार बस सुनती ही चली गयी .. जिंदगी की सारी उलझनों को कितनी आसानी से शब्दों में पिरो दिया है योगेश जी ने.. काफी दिनों से अपनी जिंदगी को लेकर हैरान परेशान सी थी मैं .. बोहोत डर लग रहा था की क्या होगा कॉलेज ख़त्म होने के बाद .. और थोडा डर तो शायद अब भी कही न कही अन्दर है ही जिसे मैंने बड़ी मुश्किल से बहला फुसला कर सुला दिया है पर वो कब फिर जाग जायेगा मुझे नही पता .. क्या सच में स्कूल और कॉलेज के जिन जिंदगी के सबसे अच्छे दिन होते है ??
क्या इससे ज्यादा ख़ुशी और आराम की जिंदगी अब सच में नही मिलेगी ??? ऐसे ही न जाने कितने सवाल हमेशा मुझे घेरे रहते है .... सच में ऐसा लग रहा है की किसी अनजानी प्यास के पीछे , अनजानी आस के पीछे मन दौड़ रहा है... पर उस अनजानी प्यास को मैं समझ ही नही पा रही ... क्या है आखिर इस जीवन का लक्ष्य ?? plzzz सहायता कीजिये .....
for details.....
ReplyDeleteliterally call me....
i cna help u wid dis....coz i also suffered frm dis some time back....say a mnth back....
श्वेता जी,
ReplyDeleteजीवन का एकमात्र लक्ष्य है स्वयं को जान लेना....स्वयं को पा लेना....क्योंकि एक स्वयं को पा लेने बाद और कुछ पाने को नहीं रह जाता है...तुम क्यों चिंता करते हो ....तुम जहाँ हो वही आनंदित होना सीख लो....फिर यहाँ या वहाँ क्या फर्क पड़ता है....ये जहाँ तुमसे है तुम इस जहाँ से नहीं हो....हाँ भौतिकम जीवन में भी कुछ लक्ष्य निर्धारित करना जरूरी है....जो तुम्हे पसंद हो उसे चुने....अंधी दौड़ का हिस्सा मत बनो....जिसमे तुम्हारा सम्पूर्ण अस्तित्व जुड़े उस कार्य से जुड़ो.......
शायद कुछ उपदेश हो गया है.....जो काम का लगे उसे रख लेना बाकी छोड़ देना...मेरी शुभकामनाये तुम्हारे साथ हैं ......खुदा तुम्हारा मुहाफ़िज़ रहे|
इमरान जी के शब्दों से इकदम सहमत हूँ. साथ ही इतना और कहूँगा अपने अनुभव से कि 'बहुत कुछ यहाँ, लक्ष्य भी' हमारे जीवन मे 'दिलचस्पी' शब्द से ताल्लुकात है. ये बनी रहती है और हम करते-गुज़रते रहते हैं बस. खुद को जानो, खुद को जीतो, यही दुनिया को जीतने की जीत है. यही लक्ष को पाने का मन्त्र. जब हम अपने ही सवालों में घिरने लगते हैं, मानो शुरुआत हो चुकी है, 'स्व यात्रा की'...शुभकामनाएं. आपकी बातें वाकई अच्छी लगीं.
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कुछ ग़मों के दीये
... bhaavpoorn abhivyakti !!!
ReplyDeleteअब तो कोई डर नहीं है न..अब देखना धीरे-धीरे तुम ये सब भूलते जाओगे..
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